- होली का त्योहार हम क्यों मनाते हैं ?
Doस्तों आप सभी को रंग भरा नमस्कार 🙏👏🙏 दोस्तों होली आ चुकी है। इस होली के लिए आप सभी दर्शकों को हार्दिक शुभकामनाएं ,दोस्तों होली का त्योहार हम क्यों मनाते हैं ? आप यह जानना चाहते हैं तो यह Artical आपके लिए है। इस आर्टिकल में हम यह जानेंगे कि होली का त्यौहार क्यों मनाते हैं और होली से जुड़ी कुछ और खास बातें भी जाने की कोशिश करेंगे। तो चलिए दोस्तों शुरू करते हैं।रंगों के त्यौहार के तौर पर मशहूर होली का यह त्योहार फाल्गुन महीने की पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है।इस त्योहार में तेज संगीत🎼और🥁ढोल के बीच एक दूसरे पर रंग और पानी फेंका जाता है। भारत के अन्य त्योहारों की तरह होली भी बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है।
जी हां प्राचीन पौराणिक कथा के अनुसार होली का त्यौहार हिरण्यकश्यप की कहानी से जुड़ा हुआ है।
हिरण्यकश्यप प्राचीन भारत का एक राजा था, जो कि राक्षस की तरह था। वह अपने छोटे भाई की मौत का बदला लेना चाहता था, जिसे भगवान विष्णु ने मारा था। इसलिए अपने आप को शक्तिशाली बनाने के लिए उसने सालों तक प्रार्थना की तप किया आखिरकार उसे बरदान मिल ही गया। लेकिन मिले हुए वरदान का गलत फायदा हिरण्यकश्यप ने उठा लिया खुद को भगवान समझ में लगा और लोगों को खुद की भगवान की तरह पूजा करने को कहने लगा। इस राजा का एक बेटा था जिसका नाम था प्रह्लाद भक्त प्रह्लाद जिसे आप जानते ही होगे भगवान विष्णु का ये परम भक्त था ,और प्रह्लाद ने अपने पिता का कहना कभी नहीं माना, और वह भगवान विष्णु की पूजा करता रहा। बेटे द्वारा अपनी पूजा न करने से हिरण्यकश्यप नाराज़ था उस राजा ने अपने बेटे को तरह-तरह से समझाया लेकिन बेटा पूरी तरह से विष्णु भगवान का भक्त बन चुका था। जब हिरण्यकश्यप को पता चला कि बेटा अभी विष्णु भगवान का भक्त बन चुका है। वह वापस कभी नहीं आ सकता और उसकी पूजा कभी नहीं कर सकता।
उसने उसे मारने का निर्णय लिया उसने अपनी बहन होलिका को गोद में लेकर आग में बैठ जाए क्योंकि आग में जल नहीं सकती थी उसे भगवन विष्णु से वरदान प्राप्त था होलिका आग में जल नहीं सकती थी। उसे वरदान प्राप्त था होलिका को आग नहीं जला सकती थी। उनकी योजना प्रहलाद को जलाने की थी, लेकिन उनकी योजना सफल नहीं हो सकी, जब होलीका भक्त प्रह्लाद को लेकर होली के आग में बैठ गई।अब प्रह्लाद सारा समय भगवान विष्णु का नाम लेता रहा और वह बच गया पर होलिका जल कर राख हो गई।
होलिका की यह हार बुराई के नष्ट होने का प्रतीक है। इसके बाद भगवान विष्णु ने नरसिंह अवतार में हिरण्यकश्यप का वध कर दिया इसलिए होली का त्योहार होली का की मौत की कहानी से जुड़ा हुआ है। इसके चलते भारत के कुछ राज्यों में होली से एक दिन पहले बुराई के अंत के प्रतीक के तौर पर होली जलाई जाती है।
- होली में रंग क्यों लगाते है ?
दोस्तों रंग होली का भाग कैसे बने होली में कब से होने लगा इसके पीछे भी एक कहानी है, एक छोटी सी कहानी है। भगवान कृष्ण के समय की माना जाता है कि भगवान कृष्ण रंगो से होली मानते थे। इसलिए होली का त्यौहार रंगों के रूप में लोकप्रिय हुआ।वृंदावन में गोकुल में अपने साथियों के साथ होली मनाते थे। वे पूरे गांव में मजाक भरी शैतानियां करते थे। आज वृंदावन जैसी मस्ती भरी होली कहीं नहीं बनाई जाती। होली वसंत का त्योहार है, और इसके आने पर सर्दिया खत्म होती है, कुछ हिस्सों में इस त्योहार का संबंध वसंत की फसल पकने से भी है। किसान की अच्छी फसल पैदा होने की खुशी में होली मनाते हैं। होली को वसंत महोत्सव या काम महोत्सव भी कहते हैं। दोस्तों होली से जुड़ी और एक कथा है जो श्री कृष्ण और कंस से जुड़े हुए है। कंस को जब आकाशवाणी द्वारा पता चला कि वासुदेव और देवकी का आठवां पुत्र उसका विनाश करेगा तो कंस ने वासुदेव तथा देवकी को कारागार में डाल दी या कारागार में जन्मे देवकी के छह पुत्रों को कंस ने मार दिया सातवें पुत्र शेषनाग के अवतार बलराम थे जिनके अंश को जन्म से पूर्व ही वासुदेव की दूसरी पत्नी रोहिणी के गरबे स्थानांतरित कर दिया गया आठवें पुत्र के रूप में श्री कृष्ण का अवतार हुआ वासुदेव ने रात में ही श्री कृष्ण को गोकुल में नंद और यशोदा के यहां पहुंचा दिया और उनकी नवजात कन्या को अपने साथ ले आए कंस उस कन्या को मार नहीं सका और आकाशवाणी हुई कि कंस को मारने वाले ने तो गोकुल में जन्म ले लिया है तब का उस दिन गोकुल में जन्मे सभी शिशुओं की हत्या करने का काम राक्षसी पूतना को शौप दिया। राक्षसी पूतना एक सुन्दर नारी का रूप बनाकर शिशुओं को बिष का स्तनपान करने गई लेकिन श्री कृष्ण पूतना का वध कर दिया यह फाल्गुन पूर्णिमा का दिन था। जिस दिन हम होली मनाते हैं अतः बुराई के अंत की खुशी में होली जाने लगी। होली का त्योहार राधा कृष्ण के पवित्र प्रेम से भी जुड़ा हुआ है बस एक दूसरे पर रंग डालना श्री कृष्ण लीला का ही अंग माना गया है। मथुरा वृंदावन की होली राधा कृष्ण के प्रेम रंग में डूबी होती है बरसाने और नंदगांव की लठमार होली जब प्रसिद्ध है होली पर होली जलाई जाती है अहंकार की होली जलाई जाती है अहम् की, वैर की, द्वेष की, ईर्ष्या की,संचय की,और प्राप्त किया जाता है विशुद्ध प्रेम शुद्ध प्रेम।
दोस्तों होली प्राचीन हिंदू त्योहारों में से एक है, और यह ईसा मसीह के जन्म के कई सदियों पहले से मनाया जा रहा है। होली का वर्णन जैमिनी के पूर्वः मीमांसा सूत्र और कतक सूत्र में भी है प्राचीन भारत के मंदिरों की दीवारों पर भी होली की मूर्तियां बनी हुई है ऐसा ही 16 वीं सदी का एक मंदिर विजय नगर की राजधानी हंपी में है। इस मंदिर में होली के कई दृश्य है जिसमें राजकुमार राजकुमारी अपने दाशो से ही एक-दूसरे पर रंग लगा रहे हैं। कई मध्ययुगीन चित्र जैसे 16वीं सदी के अहमदनगर चित्र मेवाड़ पेंटिंग बूंदी के लघु चित्र सब में अलग-अलग तरह होली मनाते देखा जा सकता है। तो इसी से हमें पता चलता है कि होली कितना प्राचीन त्यौहार है और कितनी सदियों पहले से यह हमारे यहां पर चलता रहा है पहले होली के रंग टिशू या पलाल के फूलों से बनते थे और उन्हें एक गुलाल कहा जाता था। वह रंग त्वचा के लिए बहुत अच्छे होते थे क्योंकि उनमें कोई रसायन नहीं होता था लेकिन समय के साथ रंगों की परिभाषा बदल दी गई आज के समय में लोग रंग के नाम पर कठोर रसायन का उपयोग करते हैं। इन खराब रंगों के चलते ही कई लोगों ने होली खेलना छोड़ दिया हमें पुराने त्यौहार को इसके सच्चे स्वरूप में ही मनाना चाहिए।
- होली मानाते कैसे है ?
मैं बताना चाहता हूं कि होली एक दिन का त्यौहार नहीं है कई राज्यों में यह तीन दिन तक मनाया जाता है। पहले दिन पूर्णिमा के दिन एक थाली रंगो को सजाया जाता है और परिवार का सबसे बड़ा सदस्य बकियो सदस्य पर रंग डालता है। दूसरे दिन जिसे पुणो भी कहते हैं, इस दिन होलिका के चित्र जलाते हैं और होलिका और प्रहलाद की याद में होली जलाई जाती है। देवता के आशीर्वाद के लिए मां अपने बच्चों के साथ जलती हुई होली के पाँच चक्कर लगाती है होली की पूजा की जाती है। होली का तीसरा दिन इस दिन को पर्व कहते हैं, और यह होली के उत्सव का अंतिम दिन होता है। इस दिन एक दूसरे पर रंग और पानी डाला जाता है और भगवन कृष्ण और राधा की मूर्तियों पर भी रंग डालकर उनकी की पूजा की जाती है।तो दोस्तों इस तरह मनाई जाती है होली हमारे देश में होली के पर्व की तरह इसकी परंपराएं भी अत्यंत प्राचीन है और इसका स्वरूप और उद्देश्य समय के साथ बदलता रहा है प्राचीन काल में यह विवाहित महिलाओं द्वारा परिवार की सुख समृद्धि के लिए मनाया जाता था और पूर्ण चंद्र की पूजा करने की परंपरा थी वैदिक काल में इस पर्व को नवरात्रि ईस्ट यग क्या कहा जाता था। उस समय के खेत की अधिपति अन्न को यज्ञ में दान करके प्रसाद लेने का विधान समाज में व्याप्त था। अन्न को होला कहते हैं और इसी से इसका नाम होलिकोत्सव पड़ा। भारतीय ज्योतिष के अनुसार चैत्र शुद्धि प्रतिपदा के दिन से नववर्ष का आरंभ माना जाता है। इस उत्त्सव के बाद ही चैत्र महीने का आरंभ होता है। अतः यह नव संवत का आरंभ कथा वसंत आगमन का प्रतीक भी है। इसी दिन प्रथम पुरुष मनु का जन्म हुआ था। इस कारण इसे मनुवादी तिथि कहते हैं। होली का पहला काम झंडा-डंडा गाड़ना होता है। इसे किसी सार्वजनिक स्थल पर घर के अहाते में गाड़ा जाता है। इसके पास होलीका की अग्नि इकट्ठी की जाती है। होली से काफी दिन पहले से ही यह सब तैयारियां शुरू हो जाती है। पर्व का पहला दिन होलिका दहन का दिन कहलाता है। इस दिन चौराहों पर और जहां कहीं अग्नि के लिए लकड़ी एकत्र की गई होती है, वहां होली जलाई जाती है। इसमें लकड़िया और उपले और प्रमुख रूप से होते हैं। कई स्थल पर होलिका में भरबोलीये जलने की परम्परा है। भरबोलीये गाय के गोबर से बने ऐसे उपले होते हैं जिनके बीच में छेद होता है इस छेद में मुंज रस्सी डालकर माला बनाई जाती है। एक माला में सात भरबोलीये होते हैं। होली में आग लगाने से पहले इस माला को भाइयों के सिर के ऊपर से 7 बार घुमाकर फेक दिया है। रात को होलिका दहन के समय यह माला होलिका के साथ जला दी जाती है। इसका यह आशय है, कि होली के साथ भाइयों पर लगी बुरी नजर भी जल जाए। लकड़ियों से व उपले से बनी इस होलिका दोपहर से ही विधिवत पूजन आरंभ हो जाता है। घरों में बने पकवानों का यहां भोग लगाया जाता है। दिन ढलने पर ज्योतिषियों द्वारा निकाले मुहूर्त पर ही होलिका दहन किया जाता है। इस आग में नई फसल की गेहूं की बालियों और चने के होली भी बुने जाते हैं। होलिका का दहन समाज की समस्त बुराइयों का अंत का प्रतीक है, यह बुराइयों पर अच्छाई की विजय का सूचक है। गांव में लोग देर रात तक होली के गीत गाते हैं, तथा नाचते हैं होली से अगला दीन धुलीवंदन कहलाता है इस दिन लोग रंग खेलते हैं सुबह होते ही सब अपने मित्र और रिश्तेदारों से मिलने निकल पड़ते हैं गुलाल और रंगों से सबका स्वागत किया जाता है। लोग अपनी द्वेष की, ईर्ष्या की भावना भूलकर प्रेम पूर्व गले मिलते हैं। तथा एक दूसरे को रंग लगाते हैं, इस दिन जगह-जगह टोलियां रंग-बिरंगे कपड़े पहने नाचती गाती दिखाई पड़ती है। बच्चे पिचकारी से रंग छोड़कर अपना मनोरंजन करते हैं। सारा समाज ही होली के रंग में रंग कर एक सा बन जाता है।
रंग खेलने के बाद देर दोपहर तक लोग नहाते है, और शाम को नए वस्त्र पहनकर सबसे से मिलने जाते हैं। प्रीति भोजन तथा गाने बजाने का कार्यक्रम का भी आयोजन कही-कही किया जाता है। होली के दिन घरों में खीर पुरी और उड़े आदि विभिन्न जाते हैं इस अवसर पर अनेक मिठाइयां बनाई जाती है जिनमें गुजियो का स्थान अत्यंत महत्वपूर्ण है। बेसन के सेव और दही बड़े भी सामान्य रूप से उत्तर प्रदेश में रहने वाले हर परिवार में बनाए जाते हैं। कांजी भांग और ठंडाई इस पर्व के विशेष प्ये होते हैं ,पर ये कुछ ही लोगो को भाते हैं, इस अवसर पर उत्तरी भारत के प्रायः सभी राज्यों के सरकारी कार्यालयों में अवकाश रहता है,पर दक्षिण भारत में उतना लोकप्रिय ना होने की वजह से इस दिन सरकारी संस्थानों में अवकाश नहीं रहता। भारत में होली का उत्सव मनाया अलग-अलग परदेशो में भिन्नता के साथ मनाया जाता है। वृज की होली आज भी सारे देश के आकर्षण का बिंदु होती है बरसाने की लठमार होली काफी प्रसिद्ध है इसमें पुरुष महिलाओं पर रंग डालते हैं,और महिलाएं उन्हें लाठियों तथा कपड़े के बनाए गए कोढ़ो से मारती है।
इसी प्रकार मथुरा और वृंदावन में भी पन्द्रह दिनों तक होली का पर्व मनाया जाता है, जी हां 15 दिनों तक मनाया जाता है। कुमाऊ की गीत बैठिकि में शास्त्रीय संगीत की गोष्ठीया होती है। यह सब होली के कई दिनों पहले शुरू हो जाता है, हरियाणा की धूलंडी में भाभी द्वारा देवर को सताए जाने की प्रथा है।
बंगाल की डोलजात्रा चैतन्य महाप्रभु के जन्मदिन के रूप में मनाई जाती है। जुलूस निकलते हैं और गाना बजाना भी साथ रहता है। इसके अतिरिक्त महाराष्ट्र की रंग पंचमी में सूखा गुलाल खेला जाता है। गोवा के शिमगो में जुलूस निकालने के बाद सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन तथा पंजाब के होला मोहल्ला में सिखों द्वारा शक्ति प्रदर्शन की परंपरा है। तमिलनाडु की कमान पंडिगई मुख्य रूप से कामदेव की कथा पर आधारित वसंतोत्सव है। जबकि मणिपुर के याओसांग में उस नन्ही झोपड़ी का नाम है, जो पूर्णिमा के दिन प्रत्येक नगर ग्राम में नदी अथवा सरोवर के तट पर बनाई जाती है। दक्षिण गुजरात के आदिवासियों के लिए खोली सबसे बड़ा पर्व है। छत्तीसगढ़ की होरी में लोकगीतों की अद्भुत परंपरा है। और मध्यप्रदेश के मालवा अंचल के आदिवासी इलाकों में बेहद धूमधाम से मनाया जाता है भगोरिया जो होली का ही एक रूप है। बिहार का फगुआ जमकर मौज-मस्ती करने का पर्व है। और नेपाल की होली में एक धार्मिक व सांस्कृतिक रंग दिखाई देता है। इसी प्रकार विदेशों में बसे प्रवासियों तथा धार्मिक संस्थाओं जैसे इस्कॉन या वृंदावन के बांके बिहारी मंदिर में अलग-अलग प्रकार से होली स्विंगर व उत्सव मानाने के परंपरा है। जिसमें अनेक समानताएं और विभिन्ताएं है। इस तरह से रंग बिरंगी होली अलग अलग करें हमारे देश में ही मनाई जाती है।
- Holi Date 2020 ?
दोस्तों आपको हम बता दे की 2020 में होली कब है। होली का दिनांक निम्मं है।
2020 में होली मनाने की तारीख़
होलिका दहन: 👉 09 मार्च 2020
होलिका दहन मुहूर्त: 👉 06:26 AM से 8:52 PM
भद्रा पूंछ: 👉 09:37 AM से 10:38 AM तक
भद्रा मुख:👉 10:38 AM से 12:19 PM ( 09 March 2020)
पूर्णिमा समाप्त दिनांक :👉10:38 AM से 12:19 PM ( 09 March 2020)
होली: 👉10 मार्च 2020
2021 में होली मनाने की तारीख़
होलिका दहन: 28 मार्च 2021
होली: 29 मार्च 2021
दोस्तों ये आर्टिकल कैसा लगा हमे कमेंट में जरूर बताना। पूरी आर्टिकल पढ़ने के लिए धन्यवाद इस आर्टिकल को जरुर शेयर करें। धन्यबाद। .... 🙏🙏🙏
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